मांदल की थाप और थाली की खनक पर आदिवासियों की गूंजी कुर्राटी, विदेशी सैलानियों ने भी जमकर उठाया लुत्फ

झाबुआ / आदिवासियों का उल्लास पर्व भगोरिया की शुरुआत मंगलवार काे झाबुआ और आलीराजपुर के ग्रामीण इलाकाें से हुई। पहले दिन झाबुआ के पिटोल, खरडू और थांदला में तो आलीराजपुर के बखतगढ़, आंबुआ में भगोरिया का रंग जमा। यहां बड़ी संख्या में आदिवासी युवक-युवतियां अपने पारंपरिक वेशभूषा में पहुंचे। मेले में सुबह से शाम तक ढोल-मांदल की थाप और थाली की खनक पर आदिवासियों की कुर्राटी गूंजती रही। मांदल की हुलस के साथ थाली की खनक पर पैंट शर्ट पहने और काला चश्मा लगाए युवा और साड़ी पहनी युवतियों ने जमकर नृत्य किया। इस पर्व को देखने विदेशी सैलानी भी यहां पहुंचे।


एक पर्व, तीन मान्यताएं


जयस (जय आदिवासी युवा शक्ति) जैसे आदिवासी संगठनों का मानना है, ये एक उल्लास का पर्व है। इसका असल नाम भौंगर्या है। आदिवासी होली के पहले अपने बाबादेव की पूजा की सामग्री खरीदते हैं, इसीलिए मेला लगता है। ये संगठन भगोरिया नृत्य से भी असहमत हैं। वो कहते हैं, भगोरिया पर्व नहीं है, इसलिए इस तरह का विशेष नृत्य नहीं होता। आदिवासी अपने हर काम में परंपरागत रूप से नाचते-गाते हैं। भौंगर्या के मेलों में भी वो यही करते हैं।


इतिहासकार डॉ. केके त्रिवेदी बताते हैं, भगोरिया का इतिहास 700 साल पुराना है। भगोर गांव पहले रियासत थी, लबाना राजाओं का शासन था। इसके राजा भंगू नायक थे। क्षेत्र में अकाल पड़ा तो लोग पलायन कर गए, बारिश हुई तो लौटे। तब यहां शिव मंदिर में भगवान को फसलें अर्पित की। ऐसा ही झाबुआ, मेघनगर, पेटलावद, थांदला में हुआ। बाद में ये पर्व बन गया और आदिवासी अंचल में फैल गया।


ये सामान्य धारणा है जो बाहरी लोगों को पता है। लोग इसे परिणय पर्व मानते हैं। माना जाता है, भगोरिया हाट में युवक-युवती एक-दूसरे को पसंद कर भाग जाते हैं और बाद में उनकी शादी हो जाती है। भागना शब्द से भगोरिया बना है। आदिवासी संगठन और इतिहासकार इससे सहमत नहीं हैं। जयस इस बात से इंकार करता है। इतिहासकार डॉ. केके त्रिवेदी का मानना है पुराने समय में हो सकता है इन मेलों में कुछ युवक-युवती मिलने पर विवाह के लिए तैयार होते हों। ऐसा किसी और जगह के मेले में भी हो सकता है। कुछ घटनाओं के कारण इसे परिणय पर्व कहा जाने लगा।


ये आभूषण पहनकर पहुंचीं हाट में


तोड़े: पैर में पहनने का कड़ा


गेले: कोहनी के पास पहनने का आभूषण


कंदौरा: कमर में पहनने का आभूषण


बाष्टिये: हाथ में पहनने की मोटी चूड़ियां या कड़े


सांकली: गले की भारी माला या मोटा कड़ेनुमा हार


कब, कहां का भगोरिया
03 मार्च
झाबुआ: पिटोल, खरडू, थांदला
आलीराजपुर: बखतगढ़, आंबुआ
04 मार्च
झाबुआ: माछलिया, कल्याणपुरा, मदरानी, ढेकल
आलीराजपुर: चांदपुर, बरझर, बोरी, खट्‌टाली
05 मार्च
झाबुआ: हरीनगर, समोई, पारा, चैनपुरा
आलीराजपुर: फूलमाल, सोंडवा, जोबट
06 मार्च
झाबुआ: भगोर, मांडली, कालीदेवी
आलीराजपुर: कट्‌ठीवाड़ा, वालपुर, उदयगढ़
07 मार्च
झाबुआ: मेघनगर, राणापुर, झकनावदा, बामनिया
आलीराजपुर: नानपुर, उमराली
08 मार्च
झाबुआ: झाबुआ, काकनवानी, ढोल्यावड़, रायपुरिया
आलीराजपुर: छकतला, सोरवा, आमखूंड, झीरण, कुलवट
09 मार्च
झाबुआ: रंभापुर, कुंदनपुर, पेटलावद, रजला
आलीराजपुर: आलीराजपुर, चंशेआजादनगर, बड़ा गुड़ा