सरकार बनने के सवा साल बाद भी कमजोर कड़ियों से घिरी कांग्रेस

सरकार बनने के सवा साल बाद भी कमजोर कड़ियों से घिरी कांग्रेस


भोपाल । कमलनाथ सरकार को सवा साल से ज्यादा का समय बीत गया है, लेकिन आज भी कई कमजोर कड़ियों से कांग्रेस घिरी हुई है। इनमें पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के भाई व विधायक लक्ष्मण सिंह से लेकर वरिष्ठ विधायक बिसाहूलाल सिंह, केपी सिंह, हरदीप सिंह डंग जैसे कांग्रेस विधायक शामिल हैं। वहीं समर्थन देने वाले बसपा, सपा और निर्दलीय विधायकों के असंतोष का भी सरकार को आए दिन सामना करना पड़ता है।


इन मुसीबतों के बीच मुख्यमंत्री कमलनाथ और उनके मंत्रिमंडल के साथी मजबूती के साथ मैदान में डटे हुए हैं।


मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार सवा साल की अवधि में आधा दर्जन से ज्यादा बार बहुमत साबित कर चुकी है। इसके बाद भी उसकी स्थिरता पर भाजपा सवाल खड़े करती रहती है।


तीन दिन से चल रहे राजनीतिक घटनाक्रम से सरकार एक बार फिर सकते में है। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की सूचना के बाद कांग्रेस ने अपने विधायकों व समर्थन देने वाले विधायकों की घेराबंदी की है। भाजपा के पाले में गए विधायक भले लौट आए हों, लेकिन संकट खत्म हो गया यह कहना मुश्किल है।


 

ये हैं कमजोर कड़ियां


लक्ष्मण सिंह : पांच बार के सांसद और तीन बार के विधायक हैं। सरकार में दो बार के विधायकों को मंत्री बना दिया गया है, लेकिन उन्हें छोड़ दिया। चांचौड़ा को जिला बनवाने के नाम पर मुख्यमंत्री कमलनाथ को कह रहे हैं कि उन्होंने वादा किया था और वे पलट क्यों रहे हैं। इसी मांग को लेकर लक्ष्मण सिंह ने अपने बड़े भाई दिग्विजय सिंह के सरकारी निवास पर दिनभर धरना भी दिया था।


 

हरदीप सिंह डंग : दूसरी बार के विधायक हैं और पूर्व सांसद मीनाक्षी नटराजन के विश्वस्त साथी माने जाते हैं। किसान आंदोलन के बाद कांग्रेस के टिकट पर जीतने वाले एकमात्र विधायक हैं, लेकिन उनके साथ के दूसरी बार के कई नेताओं को मंत्री बना दिया गया और उन्हें छोड़ दिया। बताया जाता है कि डंग ने मुख्यमंत्री कमलनाथ से किसी प्रशासनिक काम का आग्रह किया था। सीएम ने अपने सहयोगी को दस्तावेज देने के निर्देश दिए। काम नहीं हो पाया, तब से डंग बेहद खफा बताए जाते हैं।


बिसाहूलाल सिंह : पांच बार के विधायक, दिग्विजय सिंह सरकार में मंत्री भी रहे। उनकी वरिष्ठता और आदिवासी कोटे को दरकिनार करते हुए मंत्री नहीं बनाया गया है। सरकार बनने के बाद वे इस दर्द को बयां भी कर चुके हैं, लेकिन बाद में उन्होंने चुप्पी साध ली थी।


केपी सिंह : छह बार के विधायक हैं। दिग्विजय सरकार में मंत्री रहे। कमलनाथ सरकार में उनकी वरिष्ठता को भी किनारे करते हुए जब मंत्री या विधानसभा अध्यक्ष-उपाध्यक्ष नहीं बनाया गया तो वे शांत बैठ गए। उनके मंत्री नहीं बनने पर क्षेत्र के लोगों ने प्रदर्शन तक किए थे।


एदल सिंह कंषाना : चौथी बार के विधायक हैं। दिग्विजय सिंह के घोर समर्थक माने जाते हैं। इससे सिंधिया खेमे में उनकी पटरी नहीं बैठ पाती है। मुरैना की सभी छह सीटों पर कांग्रेस की जीत के बाद भी किसी को मंत्री नहीं बनाए जाने से कंषाना नाराज हैं।


सुरेंद्र सिंह शेरा : निर्दलीय विधायक हैं। निमाड़ की राजनीति में सुरेंद्र सिंह और कांग्रेस नेता अरुण यादव के परिवार के बीच मतभेद रहे हैं। सुरेंद्र सिंह ने लोकसभा चुनाव में अपनी पत्नी के लिए कांग्रेस से टिकट मांगा था, जिसका यादव ने विरोध किया। सुरेंद्र सिंह समय-समय पर कांग्रेस सरकार के मंत्रियों के रवैये पर नाराजगी जताते रहे हैं, लेकिन सीएम कमलनाथ को अच्छा नेता बताते हैं।